"ॐ भूर्भुवः स्वः। सिद्धमति सहिताय ब्रह्मणस्पतये नमः।"
"Om, we meditate on the divine essence of the three realms: the earthly, the atmospheric, and the celestial. We offer our salutations to the divine lord of creation, the bestower of wisdom and enlightenment."
This mantra is part of the Gayatri Mantra, which is a prayer for enlightenment and wisdom. If you have any more questions about it or need further assistance, feel free to ask!
लम्बोदरब्रह्मणस्पति ध्यानम्
श्लोक
स्वयं लम्बोदरं देवं,
दत्तात्रेयगुप्तावतारम्।
दक्षिण दिशायां यदि दृष्टिं क्रियते,
तत्र दत्तात्रेय रूपं गणेशस्य,
हनुमान रूपेण दक्षिणामूर्ति शिवः॥
जगदंबाकाली रूपेण गुरु रूपमदृश्यम्।
इत्युपरि सम्पूर्ण कैलाशं व्याप्तं,
आप एव दृश्यते।
हनूमतं च गुरु ज्ञेयं,
दक्षिणामूर्तिं प्रणमामि।
वामदृष्टे यदि दृष्टिं क्रियते,
तत्र दक्षिणामूर्ति शिवा,
भगवान विष्णु दत्तात्रेय स्वरूपेण,
सम्पूर्ण बैकुंठं व्याप्तं,
आप एव दृश्यते।
ज्योतिचंद्रिका गुहायां,
सदापीपलचौरवम्।
दत्तानुजं च अग्रजं,
एकसाथ समाहितम्।
वराहं नृसिंहं हयग्रीवं,
दत्तं च दक्षिणामूर्तिम्।
गुरूणां च प्रमुखं यं,
भक्तिदं शुभमप्रमुखम्।
दक्षिणे तारकदण्डं,
पराक्षकलमालम्बितम्।
वामहस्ते कमण्डलुं,
जपमालां च वेदपुस्तकम्।
पञ्चमुखस्य रूपं ते,
दक्षिण दृष्ट्वा गणेशम्।
सर्व बैकुंठमस्तकं,
एकगुरु रूपमुत्तमम्।
लम्बोधरं ब्रह्मणस्पति,
श्रीशैलपतिं नमामि।
गुरुसत्तामूर्तिं परमं,
भक्त्या शरणं गम्यामि।
पतये नमः।
अर्थ और व्याख्या:
1. स्वयं लम्बोदरं देवं: यहाँ भगवान गणेश का उल्लेख हो रहा है, जिन्हें लम्बोदर के नाम से जाना जाता है। उनका विशेष रूप और महत्त्व दिया गया है।
2. दत्तात्रेयगुप्तावतारम्: दत्तात्रेय का महत्व बताया जा रहा है, जो गुप्त अवतार में हैं और जिनका स्वरूप ज्ञान और मुक्ति की ओर प्रेरित करता है।
3. दक्षिण दिशायां यदि दृष्टिं क्रियते: यदि कोई व्यक्ति दक्षिण दिशा में दृष्टि डालता है, तो वह वहां दत्तात्रेय के रूप को देख सकता है।
4. हनुमान रूपेण दक्षिणामूर्ति शिवः: हनुमान जी भगवान शिव के दक्षिणामूर्ति रूप में प्रकट होते हैं। यह दर्शाता है कि शिव और हनुमान का गहरा संबंध है।
5. जगदंबाकाली रूपेण गुरु रूपमदृश्यम्: यहां जगदंबा (काली) का उल्लेख किया गया है, जो गुरु की भूमिका निभाती हैं और जो सभी के लिए आशीर्वाद स्वरूप हैं।
6. इत्युपरि सम्पूर्ण कैलाशं व्याप्तं: यह कहा जा रहा है कि यह समस्त कैलाश पर फैलता है, जो कि भगवान शिव का निवास स्थान है, और वह सभी के लिए उपलब्ध है।
7. हनूमतं च गुरु ज्ञेयं: हनुमान जी को गुरु के रूप में समझा जाना चाहिए।
8. दाक्षिणामूर्तिं प्रणमामि: यहां दक्षिणामूर्ति शिव को प्रणाम किया जा रहा है, जिनका महत्व अनंत है।
9. वामदृष्टे यदि दृष्टिं क्रियते: यदि कोई व्यक्ति वाम दिशा में दृष्टि डालता है, तो वहां दक्षिणामूर्ति शिव का रूप प्रकट होता है।
10. भगवान विष्णु दत्तात्रेय स्वरूपेण: भगवान विष्णु दत्तात्रेय के स्वरूप में दिखाई देते हैं, जिनका मतलब है कि ये सर्वगुण संपन्न हैं।
11. ज्योतिचंद्रिका गुहायां: ज्योति और चंद्रमा का संदर्भ यहां दिया गया है, जो ज्ञान और हर्ष का प्रतीक है।
12. सदापीपलचौरवम्: यह पीपल वृक्ष और उसकी पवित्रता का उल्लेख है, जो कि अभिव्यक्ति की जगह है।
13. दत्तानुजं च अग्रजं: दत्तात्रेय के अनुज (भाई) का जिक्र किया गया है।
14. एकसाथ समाहितम्: ये सब अलग-अलग पहलुओं को एक साथ समाहित करते हैं।
15. वराहं, नृसिंहं, हयग्रीवं: यहां विशेष रूप से भगवान वराह, नृसिंह और हयग्रीव का उल्लेख किया गया है, जो सभी अलग-अलग रूपों में प्रकट होते हैं।
16. गुरूणां च प्रमुखं यं: गुरु की महानता का उल्लेख है।
17. दक्षिणे तारकदण्डं: यह तारा और उसकी महिमा का संदर्भ है, जो मार्गदर्शन करती है।
18. पराक्षकलमालम्बितम्: यह अद्वितीय रूप और उनका महत्व बताया गया है, जो सभी के रूप में प्रकट होता है।
19. पञ्चमुखस्य रूपं ते: यह उन पांच मुखों के स्वरूप का बखान कर रहा है, जो ज्ञान और शक्ति का प्रतीक हैं।
20. सर्व बैकुंठमस्तकं: यहां बैकुंठ का संदर्भ, जो भगवान विष्णु का निवास स्थान है, दिया गया है।
21. एकगुरु रूपमुत्तमम्: यहां एक अद्वितीय गुरु रूप को बताने की कोशिश की गई है।
22. लम्बोधरं ब्रह्मणस्पति, श्रीशैलपतिं नमामि: अंत में लम्बोधर (गणेश) को ब्रह्मणस्पति के रूप में प्रणाम किया गया है, जो ज्ञान का दाता है।
23. गुरुसत्तामूर्तिं परमं: यहां सर्वोच्च गुरु रूप का वर्णन किया जा रहा है, जो आत्मा के कल्याण का साक्षात्कार कराता है।